भारत के राष्ट्रपति का चुनाव (Election of Indian President)

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भारत के राष्ट्रपति का चुनाव (Election of Indian President)

Overview

इस लेख में हम UPSC परीक्षा से सम्बंधित, लोक प्रशासन (Public Administration) के एक महत्पूर्ण विषय पर प्रकाश डालेंगे - भारत के राष्ट्रपति का चुनाव (Election of Indian President), in Hindi

अनुच्छेद 52: भारत का एक राष्ट्रपति होगा (संविधान के भाग-V में निहित है)

राष्ट्रपति के चुनाव के संदर्भ में निम्नलिखित नियम हैं:

  1. संविधान के प्रावधान: अनुच्छेद 54, 55, 57, 58, 62, 65, 71
  2. राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952 (संसद द्वारा अनुच्छेद 71 (3) के तहत अपनी शक्तियों के अनुसार अधिनियमित)
  3. राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनाव नियम, 1974

आईये, राष्ट्रपति चुनाव के संबंध में संवैधानिक प्रावधानों की और अधिक गहरायी से समझ लेते हैं|

इलेक्टोरल कॉलेज में शामिल हैं:

  • संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य।
  • राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।
  • दिल्ली और पांडिचेरी की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।

दो बुनियादी सिद्धांत

  • विभिन्न राज्यों के बीच प्रतिनिधित्व के पैमाने में एकरूपता।
  • राज्यों और संघ के बीच समग्र रूप से समानता।

विधायक के वोट का मूल्य = [राज्य की जनसंख्या (1971 की जनगणना) ÷ 1000] / निर्वाचित विधायकों की कुल संख्या

शेष ≥ 500 को एक के रूप में गिना जाता है।

जैसे कि, उत्तर प्रदेश - 208 (विधायकों के वोट के लिए उच्चतम मूल्य)
सिक्किम - 7 (विधायकों के वोट के लिए न्यूनतम मूल्य)

निर्वाचित विधायकों को सौंपे गए वोटों का कुल मूल्य 5,49,474 था (2007 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए)

सांसद के वोट का मूल्य = (सभी विधायकों के वोटों का कुल मूल्य)/(निर्वाचित सांसदों की कुल संख्या)

2007 में यह था 549474/(543+233) = 549474/776 = 708

आधे (0.5) से अधिक के अंशों को एक के रूप में गिना जाता है और अन्य को अनदेखा कर दिया जाता है।

आनुपातिक प्रतिनिधि (Proportional representative) और STV (single transferable vote / एकल हस्तांतरणीय वोट)

चुनाव लड़ने के लिए योग्यता:

  • भारत का नागरिक
  • न्यूनतम आयु 35 वर्ष
  • लोकसभा के चुनाव के लिए योग्य
  • भारत सरकार या राज्य सरकार या किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकरण के अधीन लाभ का कोई पद धारण नहीं करना चाहिए (वर्तमान राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, या राज्य सरकार/संघ के मंत्रीपद को छोड़कर)।

इसके अलावा राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनाव अधिनियम के तहत:

  • 15,000 रुपये की जमा राशि
  • 50 प्रस्तावक/proposers और 50 समर्थक/seconders (निर्वाचक मंडल से)।

राष्ट्रपति के रूप में एक ही व्यक्ति कितनी बार पदभार संभाल सकता है, इसपर संविधान मौन है।

  • कार्यकाल की समाप्ति से पहले या
  • रिक्ति होने की तारीख से छह महीने के भीतर।

राष्ट्रपति/उपराष्ट्रपति चुनाव से सम्बंधित विवाद, सर्वोच्च न्यायालय के मूल न्यायाधिकार क्षेत्र (original jurisdiction) में आता है।

  • हारने वाले उम्मीदवार, या किसी 20 या अधिक निर्वाचकों द्वारा सामूहिक रूप से, परिणाम घोषित होने के 30 दिनों के भीतर याचिका प्रस्तुत की जा सकती है।
  • राष्ट्रपति के निर्णय जिनके चुनाव को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया है, इस तरह के अपास्त करने के परिणामस्वरूप अमान्य नहीं होंगे।

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव:

  • चुनाव आयोग की निगरानी में आयोजित किये जाते हैं।
  • राज्यसभा के महासचिव (Secretary General of Rajya Sabha) दोनों चुनावों के लिए रिटर्निंग ऑफिसर हैं।
नोट

संविधान 1950 में लागू हुआ था, लेकिन पहला आम चुनाव 1952 में हुआ था। अंतरिम राष्ट्रपति के लिए, संविधान के अनुच्छेद 380 (1) में एक संक्रमणकालीन प्रावधान बनाया गया था [जिसे बाद में 7 वें संशोधन अधिनियम, 1956 द्वारा निरस्त कर दिया गया] - जिसके तहत संविधान सभा (constituent assembly) के सदस्यों द्वारा राष्ट्रपति चुने गए।

  • संसदीय सरकार (Parliamentary government) में वास्तविक कार्यकारी शक्ति मन्त्रि-परिषद् (Council of Ministers, CoMs) में निहित है। राष्ट्रपति सिर्फ एक कानूनी प्रमुख (de jure head) है।
  • एक देश, जो लगभग एक उपमहाद्वीप जैसा ही है, इतने बड़े पैमाने पर चुनाव कराना लगभग असंभव होगा। साथ ही, भारत में साक्षरता और जागरूकता के स्तर को देखते हुए दूसरा मतपत्र (2nd ballot) या एकल हस्तांतरणीय मत प्रणाली (single transferable vote system) बहुत व्यवहार्य प्रस्ताव नहीं है।
  • मन्त्रि-परिषद् और राष्ट्रपति के बीच घर्षण हो सकता है, क्योंकि प्रत्यक्ष चुनाव होने पर राष्ट्रपति कुछ शक्तियां प्राप्त कर सकता है। यह संसदीय लोकतंत्र के लिए उपयुक्त नहीं होगा।

राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में राज्य विधानमंडलों के उच्च सदन को शामिल नहीं किया गया है| ऐसा इसलिए है क्यूंकि:

  • सभी राज्यों में उच्च सदन मौजूद नहीं है
  • उनकी संरचना एक समान नहीं है
  • भविष्य अनिश्चित है, यानि हो सकता है आगे जाकर उन्हें ख़त्म ही कर दिया जाये

इनके अलावा कुछ और मुद्दे निम्नलिखित हैं:

  • पुराने संसद के सदस्यों (lame duck college) द्वारा चुनाव की संभावना। इससे बचने के लिए राष्ट्रपति का चुनाव, लोकसभा और राज्य विधान सभा के चुनाव के बाद होना चाहिए।
  • निर्वाचक मंडल में संघ शासित प्रदेशों (UTs) के प्रतिनिधियों को शामिल न करना। उनके मत को शामिल करने के लिए एक अस्थायी निकाय का गठन किया जा सकता है।

यह आवश्यक है, अन्यथा राष्ट्रपति केंद्र में बहुमत वाली पार्टी द्वारा चयनित, प्रधान मंत्री की एक फीकी प्रतिकृति मात्र होगा। इससे पता चलता है कि राष्ट्रपति केवल प्रथम नागरिक और दिखावे का मुखिया (figure head) नहीं है, बल्कि वह भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, जिससे वह न केवल संघ का मुखिया (Head of the Union) बन जाता है, बल्कि राष्ट्र का मुखिया (Chief of the Nation) और राष्ट्र की एकता का प्रतीक बन जाता है।

  • 'पुनर्राष्ट्रपति चुनाव मामले, 1958' में सर्वोच्च न्यायालय ने नकारात्मक राय दी क्योंकि अनुच्छेद 62 स्पष्ट रूप से चुनाव के समय को अनिवार्य करता है।
  • आगे अनुच्छेद 71(4), अब स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है कि ऐसी चुनौती पर विचार नहीं किया जाएगा।
  • निलंबित विधान सभा (suspended legislative assembly) के सदस्य राष्ट्रपति चुनाव में मतदान कर सकते हैं।

कई विशेषज्ञों के अनुसार अगर हो सके तो राष्ट्रपति को आम सहमति का उम्मीदवार होना चाहिए| इसके पीछे वे कई कारण गिनाते हैं, जैसे कि:

  • ऐसा राष्ट्रपति, राष्ट्र की एकता का प्रतीक होगा।
  • राजनीति में तटस्थ भूमिका निभाने की उम्मीद।
  • राष्ट्रपति का कार्यालय न तो विशुद्ध रूप से सजावटी है और न ही सक्रिय। दो भूमिकाओं के बीच ठीक संतुलन बनाना होता है।

उपरोक्त को आम सहमति होने से प्रबलता मिलेगी।

नेहरू उनकी उम्मीदवारी के विरोध में थे और सी. राजगोपालाचारी को नामित करना चाहते थे - क्षेत्रीय संतुलन पहलुओं के कारण, और इसलिए भी क्योंकि उनके साथ नेहरू के मतभेद थे।

फिर भी मौलाना और पटेल ने नेहरू पर प्रसाद को राष्ट्रपति के रूप में स्वीकार करने के लिए दबाव डाला। नेहरू प्रसाद के साथ कभी सहज नहीं थे।

पहले चुनाव के समय कुछ विपक्षी दलों द्वारा एक विचार को प्रस्तावित किया गया था कि राष्ट्रपति का चुनाव आम सहमति से किया जाना चाहिए, लेकिन कांग्रेस ने इसे खारिज कर दिया।

राज्यसभा के सभापति के रूप में उनके प्रदर्शन के कारण लगभग एक आम सहमति वाले उम्मीदवार थे।

  • उप-राष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनाने का चलन स्थापित हुआ।
  • नेहरू ने उनका साथ दिया| साथ ही क्षेत्रीय संतुलन पहलू के हिसाब से भी वह सही व्यक्ति थे।

उपराष्ट्रपति से राष्ट्रपति बनने के चलन के रूप में स्वाभाविक पसंद बने।

इंदिरा गाँधी धर्मनिरपेक्ष छवि बनाने के लिए उत्सुक थीं, और राष्ट्रपति के रूप में अपनी पसंद के व्यक्ति को देखना चाहती थीं। प्रधान मंत्री के पसंद के राष्ट्रपति का दौर शुरू हुआ।

इस दौरान कांग्रेस पार्टी और सरकार में दरार आ गयी थी| कांग्रेस पार्टी ने आधिकारिक तौर पर रेड्डी को मैदान में उतारा, जबकि इंदिरा ने वी.वी. गिरी का समर्थन किया।

  • 1975 के आपातकाल पर हस्ताक्षर किए
  • प्रेसीडेंसी में इंद्रा गाँधी द्वारा की गई हेराफेरी ने यह स्पष्ट कर दिया कि राष्ट्रपति देश के संस्थागत ढांचे के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जैसे कि PM के चयन और आपातकाल की घोषणा में।

निर्विरोध चुने गए, लगभग सर्वसम्मति से।

अपने पूर्ववर्तियों जैसी अकादमिक पृष्ठभूमि या बौद्धिक कद के नहीं थे, और देश के उच्च वर्ग को उनका चुनाव पसंद नहीं आया। वे इंदिरा गाँधी के बहुत वफादार थे।

राजीव और जैल सिंह के बीच मतभेदों के कारण कांग्रेस द्वारा मनोनीत किये गए।

कांग्रेस उम्मीदवार थे।

  • पहले दलित राष्ट्रपति।
  • राष्ट्रपति चुनाव में अब तक के सबसे अधिक वोट मिले (91-4): आम सहमति के उम्मीदवार होने का आभास पैदा हुआ।
  • उनकी अध्यक्षता ऐसे समय में हुई जब भारतीय लोकतंत्र, गठबंधन युग की दहलीज पर था - एक ऐसा चरण जिसमें राष्ट्रपति की भूमिका को कई नए आयाम हासिल करने की संभावना थी।

लगभग एक आम सहमति वाले उम्मीदवार की क्षमता पर आलोचकों ने संदेह किया, क्योंकि उनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी।

पहली महिला राष्ट्रपति| वह सोनिया गाँधी की दूसरी पसंद थीं, क्यूंकि उनकी पहली पसंद, शिराज पाटिल, गठबंधन सहयोगियों को स्वीकार्य नहीं थीं।