प्रशासकीय कानून क्या है? (Administrative Law in Hindi)

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प्रशासकीय कानून क्या है? (Administrative Law in Hindi)

Overview

इस लेख में हम UPSC परीक्षा से सम्बंधित, लोक प्रशासन (Public Administration) के एक महत्पूर्ण विषय पर प्रकाश डालेंगे - प्रशासकीय कानून (Administrative Law, AL), in Hindi

प्रशासकीय कानून - परिभाषा और दायरा

आज प्रशासन सर्वव्यापी है और व्यक्ति के जीवन के हर पहलू पर गहराई से प्रभाव डालता है। इस कारणवश प्रशासकीय कानून अध्ययन और अनुसंधान के लिए एक प्रमुख क्षेत्र बन गया है। पर कानून की एक अलग शाखा के रूप में प्रशासनिक कानून (प्रशासकीय कानून, Administrative Law, AL) को 20वीं शताब्दी के मध्य से ही मान्यता मिली, विशेष रूप से भारत में।

यह जीवन का एक कठोर तथ्य है कि सरकारी तंत्र के बढ़ने के द्वि-उत्पाद के रूप में प्रशासनिक शक्ति का अभूतपूर्व विकास हुआ| हालांकि यह विकास के लिए आवश्यक है, पर यह तंत्र कभी-कभी लोगों के अधिकारों और मूल्यों की उपेक्षा करता है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया काफी धीमी होती है और उसमें काफी कमियां भी हैं| कई बार इसकी वजह से कुछ प्रशासनिक दुस्साहसवादी, अधिनायकवाद (authoritarianism) के फेर में पड़ सकते हैं। यहाँ AL की आवश्यकता और महत्व समझ में आता है।

AL, समाज में विधि शासन (कानून के शासन, rule of law) को बनाए रखने के लिए विधायिका/अदालतों/प्रशासन द्वारा विकसित और संचालित उचित सीमाओं और सकारात्मक कार्रवाई मानकों (affirmative action parameters) का एक निकाय बन जाता है।

AL की 4 बुनियादी ईंटें हैं:

  1. प्रशासनिक शक्ति के दुरुपयोग की जाँच करना।
  2. अधिकारियों द्वारा नागरिकों को उनके विवादों का निष्पक्ष निर्धारण सुनिश्चित करना।
  3. उनके अधिकारों और हितों पर अनधिकृत अतिक्रमण से उनकी रक्षा करना।
  4. सार्वजनिक शक्ति का प्रयोग करने वालों को लोगों के प्रति जवाबदेह बनाना।

आप समझ गए होंगे कि AL इतना विस्तृत है कि इसकी परिभाषा करना मुश्किल है। पर फिर भी कुछ विशेषज्ञों द्वारा दी गयी इसकी परिभाषाएं देख लेते हैं|

  • F.J. Port (एफ. जे. पोर्ट) के अनुसार, "AL उन सभी नियमों से बना है जिनका अंतिम उद्देश्य सार्वजनिक कानून (public law) की पूर्ति है। यह विधायिका (legislative), न्यायपालिका (judiciary) और कार्यपालिका (executive) को छूता है।"

  • Ivor Jennings (आइवर जेनिंग्स) ने इसे "प्रशासन से संबंधित कानून" के रूप में परिभाषित किया है। यह प्रशासनिक अधिकारियों के संगठन, शक्ति और कर्तव्यों को निर्धारित करता है"।

  • दूसरी ओर, Dicay ने AL के स्वतंत्र अस्तित्व को मान्यता नहीं दी। उनके अनुसार AL राष्ट्र की कानूनी प्रणाली के उस हिस्से से संबंधित है जो सभी राज्य अधिकारियों की कानूनी स्थिति और देनदारियों को निर्धारित करता है।

  • प्रो. उपेंद्र बक्सी (Upendra Baxi) के लिए, AL किसी समाज में 'शक्ति की विकृति (pathology of power)' का अध्ययन है। इस प्रकार उनकी परिभाषा का केंद्र बिंदु सत्ता धारकों की जवाबदेही है। उनके सूत्रीकरण को स्वीकार करते हुए और भारत में मौजूदा स्थिति की पृष्ठभूमि में, AL आज केवल "अदालतों के माध्यम से, सरकारी शक्ति का मुकाबला करने के लिए, मध्यम वर्ग के भारतीयों का एक साधन" बना हुआ है।

हमारे उद्देश्य के लिए, हम इस अवधारणा की एक व्यापक परिभाषा देने का प्रयास कर सकते हैं। उसमें "AL सार्वजनिक कानून (public law) की वह शाखा है जो प्रशासनिक एजेंसियों और अर्ध प्रशासनिक एजेंसियों के संगठन और शक्तियों से संबंधित है, और यह उन सिद्धांतों और नियमों को निर्धारित करता है जिसके द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कल्याण के संबंध में आधिकारिक कार्रवाई की जाती है और समीक्षा की जाती है"।

AL की प्रकृति:

  1. AL एक कानून है, लेकिन वकीलों की परिधि में आने वाले संपत्ति कानून या अनुबंध कानून की तरह नहीं है। यह 'कानून' शब्द के यथार्थवादी अर्थ में कानून है, जिसमें नियम, मिसालें, रीति-रिवाज, प्रशासनिक निर्देश, नीतिगत बयान, परिपत्र, आदि शामिल होते हैं। AL, निजी कानून के विपरीत (जो व्यक्तियों के आपसी संबंधों से संबंधित होते है), सार्वजनिक कानून की एक शाखा है।
  2. AL, संगठित शक्ति रखने वाले व्यक्तियों के संबंधों से संबंधित है।
  3. AL, प्रशासनिक (administrative) और अर्ध-प्रशासनिक संघठनों (quasi-administrative agencies) के संगठन और शक्तियों से संबंधित है।
  4. AL में मौजूदा सिद्धांतों का अध्ययन और कुछ नए सिद्धांतों के विकास का अध्ययन भी शामिल है, जिनका प्रशासनिक शक्ति का प्रयोग करते समय प्रशासनिक (administrative) और अर्ध-प्रशासनिक संघठनों (quasi-administrative agencies) को पालन करना चाहिए।
  5. AL मुख्य रूप से आधिकारिक कार्रवाई से संबंधित है, जो हो सकता है: (a) नियम बनाने की कार्रवाई हो (b) नियम आवेदन की कार्रवाई हो।
  6. AL का एक मुख्य जोर उस प्रक्रिया पर है जिसके द्वारा आधिकारिक कार्रवाई की जाती है। यदि साधन (प्रक्रिया) भरोसेमंद नहीं हैं, तो अंत न्यायपूर्ण नहीं हो सकता।
  7. AL में नियंत्रण तंत्र (control mechanisms) का अध्ययन भी शामिल है, जिसके द्वारा प्रशासनिक और अर्ध-प्रशासनिक संघठनों को सीमा के भीतर रखा जाता है, और व्यक्तियों की सेवा में प्रभावी बनाया जाता है। इस तरह के नियंत्रण तंत्र में अदालतें, उच्च प्रशासनिक प्राधिकरण, जनमत, जनसंचार (mass media), उपभोक्ता समूह और हित अभ्यावेदन (interest representations), न्याय तक आसान पहुंच, लोकपाल और CVC, CBI, सूचना आयोग जैसी अन्य ऐसी एजेंसियां शामिल हैं।
  8. AL का अध्ययन अपने आप में एक साध्य नहीं है, बल्कि एक साध्य का साधन (means to an end) है। 20वीं शताब्दी की सरकार का विरोधाभास, राज्य की शक्तियों में विपुल वृद्धि है, जो एक ओर मानव कल्याण को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है, लेकिन दूसरी ओर व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए खतरा है। इसलिए AL का मुख्य कार्य राज्य की शक्तियों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच एक आदर्श संतुलन बनाए रखने के लिए सिद्धांतों/नियमों को विकसित करना है।

संक्षेप में, "AL कानून के दर्शन (philosophy of law) की नहीं, बल्कि कानून के समाजशास्त्र (sociology of law) की शाखा है।"

प्रशासकीय कानून की वृद्धि के कारण

  1. प्रशासकीय कानून (AL), सरकार के विशालकाय रूप का उप-उत्पाद है। पिछली शताब्दी के दौरान लगभग हर देश में सरकार की भूमिका लाईसेज़ फ़ेयर (Laissez Faire) से पितृवाद और पितृवाद से मातृवाद में बदल गई है। सरकार से अपेक्षा न केवल अपने लोगों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाने के लिए की जाती है, बल्कि यह भी कि वह पालने से चिता तक नागरिकों का ख्याल रखेगी। साथ ही 20वीं शताब्दी में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में अभूतपूर्व वृद्धि ने आधुनिक सरकार पर उन शक्तियों को नियंत्रित करने की प्रतिसंतुलन जिम्मेदारी रखी है, जिन्हें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ने पैदा किया है। आधुनिकीकरण और तकनीकी विकास महान संरचनात्मक परिवर्तन उत्पन्न करते हैं, और साथ ही सांस्कृतिक संघर्ष, बेतरतीब शहरीकरण, प्राकृतिक संसाधनों का निर्मम शोषण, पर्यावरण प्रदूषण, परिवहन अराजकता, स्वचालन (automation) और परिणामी बेरोजगारी, आर्थिक शक्ति का संकेंद्रण, निराशाजनक स्वास्थ्य और शिक्षा, चौंका देने वाली मुद्रास्फीति दर, व्यापक भ्रष्टाचार, मिलावट, कर चोरी, वाणिज्यिक कदाचार, आदि जैसी महत्वपूर्ण समस्याएं पैदा करते हैं। विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक प्रभावों वाली इन बहुआयामी समस्याओं को प्रशासन और AL के विकास के अलावा हल नहीं किया जा सकता है।

  2. एक कल्याणकारी सरकार के कामकाज के लिए 20 वीं - 21 वीं सदी में आवश्यक गुणवत्ता और मात्रा में प्रदर्शन देने के लिए, पारंपरिक प्रकार की अदालतों और कानून बनाने वाले निकायों की अपर्याप्तता है। स्वस्थ्य सेवाओं की तरह, कानून में भी दंडात्मक (punitive) से निवारक न्याय (preventive justice) की ओर एक बदलाव होता दिख रहा है। इस नई चुनौती का जवाब देने के लिए पारंपरिक अदालतों की अपर्याप्तता के कारण प्रशासनिक कानून में वृद्धि हुई है। इसके अलावा, समय की सीमा, कानून की तकनीकी प्रकृति, लचीलेपन की आवश्यकता, प्रयोग और त्वरित कार्रवाई की कमी के कारण, पारंपरिक विधायिका आधुनिक शासन के लिए आवश्यक कानूनों को पर्याप्त गुणवत्ता और मात्रा में पारित नहीं कर सकती है।

20वीं सदी में, AL के विकास के पीछे समाजवाद (socialism) की पृष्ठभूमि में आधुनिक कार्यात्मक सरकार (functional government) मुख्य शक्ति है।

भारत में AL का विकास

संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि संविधान का उद्देश्य एक संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, लोकतांत्रिक, गणतंत्र की स्थापना करना और सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, और पूजा की स्वतंत्रता, स्थिति की समानता को सुरक्षित करना है; भाईचारे, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता की गारंटी के साथ।

संविधान का भाग IV सरकार को कमजोर वर्गों की जरूरतों पर विशेष ध्यान देने के साथ, उससे कई कल्याण उन्मुख लक्ष्यों की प्राप्ति की मांग करता है।

एक कार्यात्मक सरकार प्रदान करने के अलावा, संविधान ने एक विस्तृत नियंत्रण तंत्र का भी प्रावधान किया है ताकि पानी सिर के ऊपर न चढ़े।

  • अनुच्छेद 32 और 226 के तहत, SC और HCs को सरकारी ज्यादतियों की जांच करने के लिए रिट (writs) जारी करने की शक्ति प्रदान की गयी है।
  • अनुच्छेद 300 व्यक्तियों को सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 136 सुप्रीम कोर्ट को अपील करने के लिए विशेष अनुमति देने (special leave to appeal) की शक्ति प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 227 उच्च न्यायालयों को उनके क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर सभी न्यायालयों और न्यायाधिकरणों पर अधीक्षण की शक्तियों (powers of superintendence) से नवाज़ता है।
  • अनुच्छेद 311 सरकारी सेवकों को व्यक्तिगत मामलों में सरकार की मनमानी कार्रवाई से बचाता है।
  • 'आदेश', 'उप-नियम', 'नियम' और 'अधिसूचना' को कानून के रूप में परिभाषित करके, संविधान के अनुच्छेद 13 ने प्रशासन की सभी विधायी कार्रवाइयों को कानून के दायरे में रखा है|

इन सबके कारण देश में प्रशासनिक कानून में जबरदस्त वृद्धि हुई है। आज भारत में प्रशासनिक प्रक्रिया इतनी बढ़ गई है कि यह कहना अनुचित नहीं होगा कि आज हम शासित (governed) नहीं बल्कि प्रशासित (administered) हैं।

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